Article : कुदरत के सबक



उत्तराखंड के चमोली जनपद स्थित ऋषिगंगा में ग्लेशियर खिसकने से बनी झील के टूटने से आई तबाही ने फिर इस संवेदनशील इलाके में मानवीय हस्तक्षेप के बाबत चेताया है। इस आपदा में जहां मानवीय क्षति हुई, वहीं ऋषिगंगा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट तबाह हो गया और एनटीपीसी के तपोवन हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को भारी नुकसान पहुंचा है।

 केंद्र व राज्य सरकार की तात्कालिक सक्रियता के बाद शाम तक कुछ शव बरामद करने की बात आईटीबीपी के अधिकारियों ने कही है। वहीं तपोवन बांध के पास निर्माणाधीन टनल में फंसे बीस लोगों को निकालने के प्रयासों में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ व आईटीबीपी की टीम लगी हुई थी। 

स्थानीय सड़कों की तबाही के साथ ही चीन सीमा को जोडऩे वाला एक पुल भी तबाह हुआ है। बहरहाल, तबाही के भयावह वीडियो वायरल होने के बाद उत्तराखंड में हरिद्वार से लेकर उत्तर प्रदेश के संवदेनशील जिलों में खासी सतर्कता बरती गई। अलकनंदा और गंगा तट पर रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया।

 कुंभ मेले की तैयारी में जुटा हरिद्वार का प्रशासन सकते में आ गया और तीर्थयात्रियों में भय व असुरक्षा देखी गई। बताया जा रहा है कि रैणी गांव के करीब ऋषिगंगा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में तकरीबन डेढ़ सौ श्रमिक काम कर रहे थे। जंाच के बाद ही जीवित और मरने वालों की पुष्टि होगी। बहरहाल, नंदा देवी नेशनल पार्क के करीब हुए हादसे का सबक यह भी है कि संवेदनशील इलाकों में ऐसे निर्माण से बचा जाना चाहिए।

बहरहाल, ऐसा नहीं है कि इस इलाके में ऐसी प्राकृतिक आपदा पहली बार आई है। ब्रिटिश काल में कई बड़ी ऐसी घटनाओं का उल्लेख मिलता है। लेकिन प्रकृति की संवेदनशीलता को नजरअंदाज करके हमने नदी विस्तार क्षेत्र में जो हाइड्रो प्रोजेक्ट बनाने शुरू किये, उससे पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ा है। कुछ समय पहले देहरादून स्थित प्रतिष्ठित वाडिया भू-वैज्ञानिक संस्थान के वैज्ञानिकों ने चेताया था कि जम्मू-कश्मीर के काराकोरम समेत संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर नदियों के प्रवाह को रोक रहे हैं। इससे बनने वाली झीलों के टूटने से नदियों में तबाही आ सकती है।

बीते जून-जुलाई में अध्ययन के बाद जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि बर्फ से बनने वाली झील से तेज वेग से पानी नीचे की ओर बहकर रौद्र रूप धारण कर सकता है। इस अध्ययन में ब्रिटिशकालीन दस्तावेजों का सहारा लिया गया था और इसमें क्षेत्रीय अध्ययन को शामिल किया गया था। इस अध्ययन में ऐसी डेढ़ सौ घटनाओं का जिक्र था, जिसमें हिमखंडों से बनी झीलों के टूटने का जिक्र था। रिपोर्ट में ग्लोबल वार्मिंग के चलते तेजी से पिघलते ग्लेशियरों का भी जिक्र था।
 ग्लेशियरों के ऊपरी हिस्सों से बर्फ तेजी से नीचे आती है और नदियों का मार्ग अवरुद्ध करती है। कालांतर ये झीलें टूटकर तबाही का सबब बनती हैं। ऐसे में इन संवेदनशील इलाकों में बांधों के निर्माण से परहेज करने की जरूरत है ताकि भविष्य में झील के फटने से पानी को निकलने को प्राकृतिक मार्ग मिल सके।

Comments